Ram falls weak in front of demon, Sita killed : कौन राक्षस राम पर पड़ा भारी? भगवान राम कुछ नहीं बिगाड़ सके उसका। तब माता सीता ने उसका युद्धभूमि में वध किया। क्या आपको इस कथा की जानकारी है? यदि नहीं जानते तो मैं आपको बता रहा हूं। घटना लंका विजय के सालों बाद की है। भगवान राजसभा में विराजमान थे। तभी लंकाधिपति विभीषण वहां पहुंचे। वे बहुत भयभीत थे। आते ही कहने लगे–मुझे बचाइए। कुंभकर्ण का बेटा मूलकासुर जान का दुश्मन बन गया है। लगता है कि अब न लंका बचेगी और न मेरी जान। श्रीराम ने पहले उनको शांत किया। फिर पूरा मामला पूछा।
कुंभकर्ण का बेटा मलकासुर बना आफत
विभीषण ने बताया कि कुंभकर्ण का एक बेटा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था। उसे अशुभ जान जंगल में फेंक दिया गया था। उसी का नाम मूलकासुर है। मधुमक्खियों ने उसे पाला। वहीं उसे पता लगा कि आपने उसके खानदान का सफाया कर दिया। लंका जीतकर वहां का राज आपने मुझे दे दिया। अब वह हम दोनों को अपना दुश्मन मानता है। उसने घोषणा की कि वह पहले मुझे मारेगा। फिर आपको मार डालेगा। वह पहले से अत्यंत बलशाली है। ऊपर से उसने ब्रह्माजी से कई वर पा लिए हैं। उसने लंका पर हमला कर दिया। छह माह तक मैंने उसका मुकाबला किया। लेकिन मुझे जान बचाकर भागना पड़ा। अपने परिवार व मंत्रियों के साथ किसी तरह आया हूं। लंका मेरे हाथ से निकल गया है। अयोध्या पर भी खतरा है।
भीषण युद्ध में राम पर भारी पड़ा मलकासुर
यह सुन भगवान लक्ष्मण, हनुमान को लेकर सेना सहित पुष्पक विमान से लंका रवाना हुए। राम के आने की सूचना मूलकासुर को मिली। वह भी सेना सहित युद्धभूमि में आ गया। उनमें सात दिन तक जबर्दस्त युद्ध चला। युद्ध में राम की सेना को भारी नुकसान हुआ। मलकासुर हावी हो रहा था। निर्णायक लड़ाई की तैयारी होने लगी। तभी विभीषण ने बताया कि वह और अधिक शक्ति के लिए तांत्रिक साधना के लिए गुफा में गया है। श्रीराम बेहद चिंतित थे। उन्हें मलकासुर से निपटने का तरीका नहीं सूझ रहा था। तभी अचानक ब्रह्मा जी वहां पहुंचे। उन्होंने बताया कि मलकासुर की मौत स्त्री के हाथों होगी। उसे अन्य कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता। मैंने उसे ऐसा ही वरदान दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि एक मुनि ने इसे सीता के हाथों मारे जाने का श्राप दिया है। अतः माता सीता को युद्ध की कमान सौंपें।
सीता को युद्धभूमि में बुलाया गया
राम ने कोई उपाय न देख हनुमान जी को पुष्पक विमान से अयोध्या भेजा। पति का संदेश मिलते ही माता सता युद्धभूमि पहुंचीं। श्रीराम ने उन्हें सारा मामला बताया तो अत्यंत क्रोधित हुईं। क्रोध से उनके शरीर से उन्हीं के समान तामसिक शक्ति निकली। उसका स्वर भयानक था। वह चंडी रूप में युद्धभूमि में पहुंची। उधर श्रीराम ने वानर सेना को मलकासुर की तांत्रिक क्रियाएं भंग करने के लिए गुप्त गुफा में भेजा। वानर सेना ने गुप्त गुफा में भारी तोड़-फोड़ की। सारी सामग्री नष्ट कर दी। यह देख मलकासुर अत्यंत क्रोधित हुआ।
माता सीता ने मलकासुर का वध किया
वानर सेना का पीछा करते हुए युद्धभूमि में आ गया। सीता के तामसी रूप को देखकर कहा, तू कौन है? चली जा। मैं स्त्रियों से युद्ध नहीं करता हूं। माता ने भीषण आवाज करते हुए कहा कि मैं तुम्हारी मौत हूं। मुनियों व निर्दोषों पर किए अत्याचार का तुम्हें दंड दूंगी। इतना कह उन्होंने मलकासुर पर बाण चलाए। मलकासुर ने भी जवाब दिया। दोनों में भयानक युद्ध हुआ। तभी सीता ने मलकासुर का सिर तीर से काट डाला। उसका कटा सिर लंका के द्वार पर गिरा। उसकी सेना भय से हाहाकार करती भाग खड़ी हुई। माता सीता का तामसी रूप उनके शरीर में समा गया। इसके बाद भगवान ने विभीषण को पुनः लंका में प्रतिष्ठित कराया। वे माता व हनुमान के साथ कुछ दिन लंका में रहे। फिर अयोध्या लौट आए। इस तरह आपने जाना कि कौन राक्षस राम पर पड़ा भारी।
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