भौतिक व आध्यात्मिक लक्ष्य पाने का सुनहरा मौका पांच महापर्व

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सर्वार्थ सिद्धि योग में पाएं मनचाही सफलता
सर्वार्थ सिद्धि योग में पाएं मनचाही सफलता

Golden opportunity to achieve physical and spiritual goals : भौतिक व आध्यात्मिक लक्ष्य पाने का सुनहरा मौका पांच महापर्व। यह महापर्व दीवापली के पांच पर्वों के रूप में शीघ्र आने वाला है। सामान्यतः यह पांच दिनों का होता है। इस वर्ष 499 साल बाद दुर्लभ संयोग बना है। यह सिर्फ चार दिन का ही होगा। छोटी दीपावली इस बार दीपावली के दिन ही होगी। इसलिए धनतेरस दीपावली के एक दिन पूर्व 13 नवंबर को है। इसके बाद कार्तिक पूर्णिमा तक भी उपासना के लिए बेहद उपयोगी होता है। इस दौरान किसी भी मंत्र की साधना आसान होती है। शाबर मंत्रों के के प्रयोग का अधिकारी बनने के लिए भी यह समय अत्यंत उपयोगी है। अध्यात्म के लिए भी यह स्वर्णिम समय है। 

व्यर्थ में न गंवाएं यह महत्वपूर्ण अवसर

इस अवसर के महत्व को समझने में लोग भूल करते हैं। वे इसका मूल उद्देश्य भूलते जा रहे हैं। लोग पर्व को सिर्फ मौज-मस्ती का समय मानते हैं। इस दिन शराब का सेवन आम हो गया है। साथ ही जुए में इस अहम मौके को बेकार कर देते हैं। थोड़ी सी योजना के साथ काम करें तो मनचाहा फल पा सकते हैं। यह पर्व सामान्य नहीं है। यह दुखों से छुटकारा दिलाने का सटीक समय है। आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति में भी अत्यंत उपयोगी है। लक्ष्मी की उपसाना का तो यह पर्व है ही। यह रोशनी भी फैलाता है। इसका मतलब सिर्फ घरों में ही रोशनी फैलाना नहीं है। आप जीवन में भी रोशनी फैला सकते हैं। इससे ज्ञान, श्री, शौर्य एवं आध्यात्मिक साधना की प्राप्ति आसानी से होती है। साथ ही किसी भी लक्ष्य को आसानी से पा सकते है।

जानें कौन से हैं पांच पर्व

पांचों महापर्व का विवरण नीचे दे रहा हूं। इसमें इनके मनाने का दिन है। साथ ही यह भी बताया है कि इनकी विशेषता क्या है। उस विशेषता के साथ यह सभी लक्ष्य के लिए प्रभावी है। ध्यान रखें कि पांच दिवसीय साधना के लिए ये सभी उपयुक्त हैं। योजनाबद्ध तरीके से करें तो इसी अवधि में बड़े लक्ष्य को पाया जा सकता है। यह भौतिक से लेकर आध्यात्मिक तक हो सकता है। शाबर मंत्रों का प्रयोग करना हो तो इस अवधि में उनका जप कर लें। उससे आपकी ताकत बढ़ जाएगी। साथ ही हर तरह की भौतिक व आध्यात्मिक लक्ष्य पाने का रास्ता खुलेगा।

धनतेरस व धन्वंतरि जयंती

दीपावली के दो दिन पूर्व यह होता है। इसे धन त्रयोदशी भी कहते हैं। इसी दिन आयुर्वेद के जन्मदाता धन्वंतरि का भी जन्म हुआ था। उन्हें चिकित्सा विज्ञान का जनक भी कहा जाता है। इस दिन की पूजा-साधना अकाल मृत्यु से मुक्ति दिलाती है। इसके लिए यमराज को दीप दान करना चाहिए। शाम को घर के बाहर दीप जलाना चाहिए। यह मन के भय और अंधकार को दूर करने में भी सहायक है। रात्रि के पहले पहर में धन्वतरि की पूजा की जाती है। यह स्वास्थ्य, ऐश्वर्य एवं आयुवृद्धि में सहायक है। यह आंतरिक शक्ति जगाने का मौका भी माना जाता है।

नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली

यह दीपावली से एक दिन पहले आता है। इस दिन की पूजा-साधना नर्क से मुक्ति दिलाती है। यह आंतरिक भय को खत्म करती है। निर्विघ्न रूप से जीने तथा साधना पथ पर आगे बढ़ने में प्रभावी है।  यम के चौदह नामों का तीन-तीन बार उच्चारण कर तर्पण करना चाहिए। शाम को घर के बाहर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चार बत्ती वाले दीपक को जलाएं। फिर उन्हें गोशाला, पूजा घर, रसोई घर, स्नानघर में रखें।

दीपावली

इस दिन लोग गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियां लाएं। उनकी श्रद्धा से नियमपूर्वक पूजा करें। व्यापारी कुबेर एवं खाते-बही के पूजन करें। सभी लोग घर, कार्यस्थल की ठीक से सफाई करें। सुबह स्नान के बाद पितरों का पूजन-तर्पण करें। शाम को विधिपूर्वक कलश स्थापित करें। फिर लक्ष्मी, गणेश, महाकाली, महासरस्वती का पूजन करें। पूजा स्थान पर रात भर घी का दीपक जलाएं। इस दौरान श्री-सूक्त एवं लक्ष्मी-सूक्त का पाठ बहुत फलदायी होता है। लक्ष्मी के मंत्रों का जप भी बहुत फलदायी होता है। दीक्षा प्राप्त व्यक्ति इष्ट या अन्य अभीष्ट मंत्र का जप करें। रात्रि जागरण के बाद तड़के नदी, पहाड़ या किसी खुले स्थान में सूर्योदय के समय भगवान सूर्य की वंदना करें। जो रात्रि जागरण नहीं कर सकते, वह देवता-देवी व गुरु को प्रणाम कर सो सकते हैं। लेकिन उन्हें भी सूर्योदय के समय उठ जाना चाहिए। उन्हें भी सूर्य की वंदना करनी चाहिए। रात भर घर एवं आसपास को रोशनी से जगमग रखें। घी का दीपक सर्वश्रेष्ठ होता है।

गोवर्धन पूजा और अन्नकूट

यह पूजन गोवंश की रक्षा के साथ ही प्रकृति की उपासना के लिए महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि गोवंश का सम्मान करने वाले की स्थिति कभी खराब नहीं होती है। दीपावली के अगले दिन इसे मनाया जाता है। सुबह गोवंश और गोवर्धन पर्वत की पूजा का विधान है। जो गोवर्धन के पास नहीं हैं, वे गोबर से उसका रूप बनाकर पूजन कर सकते हैं। इस पूजा के माध्यम से प्रकृति का आशीर्वाद लिया जाता है। प्रकृति की पूजा एक तरह से शक्ति को भी प्रसन्न करता है। यह आपके भौतिक व आध्यात्मिक लक्ष्य पाने का रास्ता साफ करेगा।

भाई दूज या यम द्वितीया

कलह, अपकीर्ति, शत्रुभय से छुटकारा के साथ धन, आयु, यश और बल में वृद्धि के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन के पूजन का असर साल भर रहता है। प्राचीन कथा के अनुसार इस दिन यमुना ने अपने भाई यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। इस दिन नर्क की यातना भोगने वाले जीवों को उससे छुटकारा मिल गया था। इससे प्रसन्न सभी जीवों ने मिलकर बड़ा उत्सव मनाया जिससे यमलोक को भारी खुशी हुई। इसी वजह से यह पर्व भाई-बहन के पर्व के रूप में भी विख्यात हुआ। इस दिन सुबह चंद्र दर्शन करें। फिर तेल लगाकर स्नान (यमुना हो तो सर्वश्रेष्ठ) व पूजा से निवृत्त होकर मध्याह्न में बहन के घर जाकर वस्त्र व द्रव्यादि से बहन का सम्मान करना चाहिए। शाम को घर के बाहर यमराज के लिए चार बत्तियों वाला दीपक जलाकर दीपदान करें। इसके बाद ही घर में दीपक (रोशनी) जलाएं।

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