जानें सुहागिनों के 16 श्रृंगार के वैज्ञानिक कारण

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जानें सुहागिनों के 16 श्रृंगार के वैज्ञानिक कारण
जानें सुहागिनों के 16 श्रृंगार के वैज्ञानिक कारण।

Know the scientific reasons of 16 shringars of suhagins : जानें सुहागिनों के 16 श्रृंगार के वैज्ञानिक कारण। इसमें पढ़ें बाकी बचे सुहागिनों के आठ श्रृंगार के बारे में। जानें क्या कहती हैं मान्यताएं? इनका चिकित्सीय व वैज्ञानिक आधार क्या है? क्यों करें 16 श्रृंगार के हर श्रृंगार? फिर आकलन करें कि कितना तर्कपूर्ण, उचित और महत्वपूर्ण है। बिना पूरा पढ़े कोई राय नहीं बनाएं।

नौवां श्रृंगार : कर्ण फूल

यह आभूषण कान में पहना जाता है। कई तरह की सुंदर आकृतियों में है। सुहागिनों के लिए माना जाता है। आधुनिक लड़कियां भी इसे पसंद करती है। इसमें प्रतीकात्मक मान्यता है। वधु को दूसरों की बुराई सुनने से दूर रहने का संकेत है। इसका संबंध स्वास्थ्य से भी जुड़ा है। कर्णपाली (इयरलोब) पर कई प्वाइंट होते हैं। उस पर दबाव से माहवारी के दर्द से आराम मिलता है। इसका संबंध किडनी व मूत्राशय से भी है। ये महिला की ख़ूबसूरती को निखारते हैं।

दसवां श्रृंगार: हार या मंगल सूत्र

यह गले में पहना जाने वाला आभूषण है। यह उसकी वचनवद्धता का प्रतीक है। सुहागिनों के लिए क्यों यह जरूरी है? इसे जानने के लिए और बातें भी देखनी होंगी। इसके स्वास्थ्यगत कारण भी जानें। गले में कुछ दबाव बिंदु होते हैं। उससे शरीर के कई हिस्सों को लाभ पहुंचता है। इसीलिए हार को सौंदर्य का रूप दिया गया है। मान्यता है कि मंगलसूत्र सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। यह दिमाग और मन को शांत रखता है। यह जितना लंबा होगा उतना फायदा है। उसके छोर का हृदय के पास होना अच्छा होता है। इसके काले मोती प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं।

ग्यारहवां श्रृंगार : बाजूबंद

जानें सुहागिनों के 16 श्रृंगार में अब 11वें श्रृंगार बाजूबंद के बारे में पढ़ें। इस आभूषण से बाहों को कसा जाता है। कड़े के सामान की आकृति वाला होता है। पहले यह सांप की आकृति में होता था। मान्यता है कि इससे परिवार के धन की रक्षा होती है। यह शरीर में ताकत बनाए रखता है। सुहागिनों के लिए क्यों जरूरी है बाजूबंद को जानें। यह रक्त संचार करने में भी सहायक है।

बारहवां श्रृंगार  : कंगन व चूड़ियां

कंगन हाथ में पहना जाने वाला आभूषण है। इसके माध्यम से सास आशीर्वाद देती है। मुंह दिखाई की रस्म में वह देती है। इस तरह खानदान की धरोहर को सास द्वारा बहू को सौंपने की परंपरा का निर्वाह किया जाता है। मान्यता है कि सुहागिन की कलाइयां चूड़ियों से भरी होनी चाहिए। ये चूड़ियां आमतौर पर कांच, लाख आदि से बनी होती हैं। इसका संबंध चंद्रमा से माना जाता है। इनके रंगों का भी विशेष महत्व है। नव वधु के हाथों में लाल रंग की चूड़ियां होती हैं। यह खुशी और संतुष्टि की प्रतीक है। हरा रंग ससुराल की समृद्धि की प्रतीक है। पीली या बंसती चूड़ियां उल्लास की प्रतीक है। इसे स्वास्थ्य से भी जोड़ा जाता है। इसके अनुसार चूड़ियां और उनकी खनक रक्त संचार ठीक करती है। साथ ही हाथ की हड्डियों को मजबूत बनाती है।

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तेरहवां श्रृंगार : अंगूठी

अंगूठी को तेरहवां श्रृंगार माना जाता है। इसे दंपति के प्यार व विश्वास से भी जोड़ा जाता है। सगाई या मंगनी में अंगूठी की रस्म इसी से जुड़ी है। रामायण में भी इसका उल्लेख है। राम ने लंका में हनुमान के माध्यम से सीता को संदेश भेजा था। तब स्मृति चिह्न के रूप में अपनी अंगूठी दी थी। इसका स्वास्थ्य से भी जुड़ा पक्ष है। अनामिका उंगली की नसें हृदय व मस्तिष्क से जुड़ी होती हैं। इन पर दबाव से दोनों स्वस्थ रहता है। जानें सुहागिनों के 16 श्रृंगार में नीचे पढ़ें 14वें, 15वें और 16वें श्रृंगार के बारे में।

चौदहवां श्रृंगार : कमरबंद

कमरबंद कमर में पहना जाने वाला आभूषण है। स्त्रियां विवाह के बाद इसे पहनती हैं। इसे शुभ माना जाता है। इसे पहनने से वे और आकर्षक दिखाई पड़ती है। यह प्रतीक है कि सुहागन घर की स्वामिनी है। सुहागिनों के लिए क्यों जरूरी कमरबंद, सवाल पर इसके समर्थक कहते हैं कि इससे माहवारी व गर्भावस्था में आराम मिलता है। इसे वे मोटापे को रोकने में कारगर मानते हैं।

पंद्रहवां श्रृंगार : बिछुवा

पैर की उंगलियों में रिंग की तरह पहना जाता है। यह चांदी का होता है। अंगूठे और छोटी अंगुली को छोड़कर बीच की तीन अंगुलियों में पहना जाता है। फेरों के वक्त लड़की को बिछुआ पहनाया जाता है। यह प्रतीक है कि दुल्हन सभी समस्याओं का हिम्मत से सामना करेगी। इसे शुभ और समृद्धि से जोड़ा जाता है। स्वास्थ्य से भी इसका संबंध माना जाता है। पैरों की उंगलियों की नसें गर्भाशय से जुड़ी होती हैं। बिछिया पहनने से उससे जुड़ी समस्याओं से राहत मिलती है। ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है।

सोलहवां श्रृंगार : पायल

पायल का क्रेज नए जमाने की लड़कियों में भी है। इसकी सुमधुर ध्वनि अच्छी लगती है। पुराने जमाने में पायल की झंकार से बुजुर्ग पुरुषों को पता लगता था कि बहू आ रही है। वे उसके रास्ते से हट जाते थे। पायल संपन्नता की प्रतीक होती है। घर की बहू को लक्ष्मी माना गया है। इसलिए संपन्नता के लिए उसे पायल पहनाई जाती है। पायल से हड्डियों के दर्द में राहत मिलती है। उसकी ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा घर से दूर रहती है।

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