क्या आप जानते हैं श्रीकृष्ण के चमत्कारिक रहस्य

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श्री कृष्णा की लीला
श्री कृष्णा की लीला

Secret of shri Krishna : क्या आप जानते हैं श्रीकृष्ण के चमत्कारिक रहस्य के बारे में? यदि नहीं तो हम आपको बताते हैं। विष्णु के अवतारों में सिर्फ श्रीकृष्ण को 16 कलाओं से युक्त माना गया है। इसलिए उन्हें भगवान विष्णु का परमावतार या पूर्णावतार भी कहा गया है। यही कारण है कि मानव जीवन में रहने क बाद भी उन्होंने समय-समय पर भगवान विष्णु के आयुध सुदर्शन चक्र का प्रयोग किया। उनका पूरा जीवन ही रहस्य और चमत्कारों से जुड़ा रहा। आइए उनके कुछ कम प्रचलित रहस्यों और चमत्कारों की चर्चा करें।

अर्जुन से बड़े धनुर्धर थे

दुनिया अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर मानती है लेकिन क्या आपको पता है कि मद्र की राजकुमारी लक्ष्मणा के स्वयंवर में अर्जुन अपने तीर से लक्ष्य को भेद नहीं सके थे। उस समय श्रीकृष्ण ने लक्ष्य भेद कर लक्ष्मणा से विवाह किया था। इसका कारण यह था कि लक्ष्मणा उन्हें पहले से मन ही मन पति मान चुकी थी। आज जीवाणु युद्ध की बात की जाती है लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि द्वापर युग में भी जीवाणु युद्ध हुआ था। श्रीकृष्ण को बाणासुर के खिलाफ युद्ध के लिए उन्हें भगवान शिव से लड़ना पड़ा था। उस समय भगवान शिव के महेश्वरज्वर की काट में वैष्णज्वर का प्रयोग किया था।

54 दिन में 54 कलाओं का ज्ञान लिया

श्रीकृष्ण के चमत्कारिक रहस्य में जानें उनका रंग। उनकी त्वचा का रंग काले मेघ की तरह काला था। शरीर अत्यंत कोमल व लावण्यपूर्ण था। खास बात ये है कि युद्ध के समय उनकी मांशपेशियां बड़ी व कठोर हो जाती थीं। सामान्य दिनों में उनके शरीर से मदहोश करने वाली सुगंध निकलती थी। उनकी शिक्षा बहुत देर से शुरू हुई। अपनी अद्भुत क्षमता के कारण देर की कमी उन्होंने पूरी कर ली। ऋषि सांदीपनि से सिर्फ 54 दिन में 54 कलाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया।

सबसे खतरनाक थी नारयणी सेना

महाभारत युद्ध में नारायणी सेना का जिक्र आता है। दुर्योधन ने युद्ध से पहले श्रीकृष्ण के प्रस्ताव पर निहत्थे कृष्ण के बदले उनकी नारायणी सेना का चुनाव किया। क्या आप जानते हैं कि नारायणी सेना कैसी थी। उसमें भी श्रीकृष्ण के चमत्कारिक रहस्य निहित थे। वह उस समय दुनिया की सबसे खतरनाक सेना थी। उसे श्रीकृष्ण ने ही अस्त्र-शस्त्र के साथ ही खतरनाक प्रशिक्षण दिया था। आजकल की भाषा में कहें तो जूडो-कराटे एवं मार्शल आर्ट का। माना जाता है कि उस सेना का सामना करने की ताकत उस समय की किसी भी सेना में नहीं थी।

56 भोग प्रसाद का मतलब

भगवान को 56 भोग लगाने के पीछे एक रोचक दंत कथा है। उन्होंने बाल्यकाल में ही गोकुल के लोगों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्द्धन पर्वत को कानिष्ठा अंगुली पर उठा लिया था। सात दिन तक भूखे-प्यासे खड़े रहकर वे उसे उठाए रहे। गोकुल के लोग उसके नीचे सुरक्षित रहे। उस समय श्रीकृष्ण हर प्रहर में एक बार भोजन करते थे। अर्थात एक दिन में आठ बार भोजन करते थे। इस हिसाब से सात दिन में उन्होंने 56 बार का भोजन छोड़ दिया था। बाद में इंद्र को अपनी गलती का भान हुआ। वे शांत हुए। गोकुलवासी सुरक्षित और प्रसन्न मन से बाहर निकले। उन्होंने भगवान को 56 बार के भोजन का प्रतिफल दिया। उन्हें 56 तरह के पकवान बनाकर खिलाया। तभी से उन्हें 56 भोग का प्रसाद चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है। ये थे श्रीकृष्ण के चमत्कारिक रहस्य।

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