पौराणिक काल के पात्रों के जन्म में चमत्कार नहीं

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वृक्षों का महत्त्व।
वृक्षों का महत्त्व ।

Science behind birth of some historical characters : पौराणिक काल के पात्रों के जन्म में चमत्कार नहीं। उसे लेकर कुछ लोग भारतीय धर्म-संस्कृति को लेकर मजाक उड़ाते हैं। लेकिन यह उनका अधकचरा ज्ञान का प्रदर्शन है। पुराणों को ठीक से पढ़ें। आप पाएंगे कि उनका जन्म सामान्य तरीके से ही हुआ। उनके जन्म में प्राकृतिक और वैज्ञानिक आधार दिखता है।

16 लोगों के जन्म पर संशय

पौराणिक काल के 16 लोगों के जन्म की कथाएं विवादित मानी जाती हैं। विदेशी आक्रमण के पहले हमारा समाज काफी खुला था। लोगों की सोच व्यावहारिक थी। बाद में अंधविश्वास और सामाजिक विसंगतियां बढ़ीं। इसी वजह से सारा भ्रम और अंधविश्वास फैला। इसे समझाने के लिए कुछ पात्रों के जन्म की प्रक्रिया को स्पष्ट करूंगा। इससे स्पष्ट होगा कि अप्राकृतिक नहीं पौराणिक काल के पात्रों का जन्म।

महाभारत काल की एक कथा

हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर्य के निःसंतान निधन से उत्तराधिकार का संकट हो गया। तब सत्यवती ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने महर्षि व्यास को इस कार्य की जिम्मेदारी सौंपी। व्यास की कृपा से धृतराष्ट्र और पांडु का जन्म हुआ। कथा के अनुसार व्यास ने विचित्रवीर्य की विधवा अंबिका व अंबालिका को निर्वस्त्र देखा तो पुत्र हो गया। इसे पढ़कर अप्राकृतिक जन्म का बोध होता है। यह कैसे संभव है कि देखकर ही बच्चे का जन्म हो जाए? दरअसल पौराणिक काल के पात्रों के जन्म में चमत्कार नहीं हुआ था।

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महाभारत आदि पर्व से स्पष्ट होती है स्थिति

अब कथाओं के बदले यदि प्रमाणिक आधार पर नजर डालें। महाभारत में आदि पर्व के 106.1, 2, 6 और 26 खंड में लिखा है। उसके अनुसार व्यास ने माता का हित साधने के लिए अंबिका के साथ संगम किया। उनके भयानक रूप से अंबिका ने डर से आंखें बंद कर लीं। इसी तरह अंबालिका डर से पीली पड़ गई। इसके बाद महर्षि दासी के साथ कामोपभोग कर प्रसन्न हुए। अब पाठकों को धृतराष्ट्र, पांडु एवं विदुर के जन्म को लेकर कोई संशय नहीं होना चाहिए।

कर्ण व पांचों पांडवों के जन्म की कथा

प्रचलित कथा के अनुसार कर्ण समेत पांचों पांडवों का जन्म भी देवताओं की कृपा से बताया जाता है। सच बिल्कुल अलग है। बिल्कुल भी अप्राकृतिक नहीं पौराणिक काल के इन पात्रों का जन्म। कुंती ने उत्सुकतावश कुंआरेपन में सूर्य देव का ध्यान किया। सूर्य प्रकट हुए और उसे एक पुत्र दिया जो तेज में सूर्य के ही समान था। वह अविवाहित थी इसलिए लोक-लाज के डर से उसने उस पुत्र को एक बक्से में रख कर गंगा में बहा दिया। जाहिर है कि यदि सिर्फ देवता की कृपा थी तो लोकलाज क्यों? कारण साफ है कि पौराणिक काल के पात्रों के जन्म में चमत्कार नहीं हुआ।

पांडु के दबाव में कुंती ने पुत्र जन्म के लिए देवताओं को बुलाया

श्राप के कारण शारीरिक संबंध बनाने में असफल पांडु बोले, ” कुंती! मेरा जन्म ही वृथा हो रहा है। क्योंकि संतानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, और देव-ऋण से मुक्त नहीं सकता है। कुंती बोली, ऋषि दुर्वासा ने मुझे मंत्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित संतान प्राप्त कर सकती हूं। आप आज्ञा करें। पांडु के आदेश पर कुंती ने धर्म से युधिष्ठिर, वायु से भीम और इंद्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई। जब पांडु ने चौथे पुत्र की इच्छा व्यक्त की तो कुंती ने अपनी सौतन माद्री को उस मंत्र की दीक्षा दी। माद्री ने अश्वनी कुमारों को आमंत्रित कर नकुल व सहदेव को जन्म दिया। अर्थात देवता के सहयोग से स्त्री गर्भ धारण करती थी। उससे संतान का जन्म होता था। इससे स्पष्ट हो गया कि पौराणिक काल के पात्रों के जन्म में चमत्कार नहीं हुआ था।

महाभारत आदि पर्व ने साफ की सच्चाई

व्यास रचित महाभारत के आदि पर्व के 123वें अध्याय में साफ लिखा है कि कुंती ने चौथे पुत्र के लिए पांडु के अनुरोध को ठुकरा दिया। उन्होंने तर्क दिया कि ज्ञानी लोग आपातकाल में भी इस तरह से चौथे प्रसव की प्रशंसा नहीं करते हैं। क्योंकि चौथे पुरुष से संसर्ग करने पर स्त्री व्याभिचारिणी और पांचवें से वेश्या हो जाती है। मतलब साफ है कि बच्चे के जन्म में  चमत्कार नहीं, परपुरुष संसर्ग की बात है।

पौराणिक व्याख्या

ऊपर बताई गई सारी जन्म विधि को नियोग विधि कहा गया है। इसके बारे में प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करें तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है। मनु स्मृति (9/59) के अनुसार पति से संतातन नहीं होने पर महिला पति द्वारा नियुक्त खानदान के व्यक्ति से संतान प्राप्त कर सकती है। हालांकि बाद में मनु ने दुरुपयोग के कारण इस व्यवस्था पर रोक लगा दी थी। हालांकि पौराणिक ग्रंथों से ही पता चलता है कि उनकी रोक मानी नहीं गई।

ऋषियों व अप्सराओं की कथा

प्राचीन ग्रंथों में कई जगहों पर वर्णन है कि अप्सराओं को देखकर ऋर्षि कामवासना से भर उठे। विचार करें कि जहां स्त्री और पुरुष दोनों थे। एक रिझा रहा था और दूसरा उस भंवर में बह गया तो फिर कैसे अप्राकृतिक परिणाम हुआ? संभव है कि चूंकि ऋषि और अप्सरा को गृहस्थ जीवन की इजाजत नहीं थी। इसलिए उन्होंने संतान को न तो स्वीकार किया और न पालन-पोषण किया। लेकिन इससे यह तो साफ है कि पौराणिक काल के पात्रों के जन्म में चमत्कार नहीं हुआ था।

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