manas worship is the best : सर्वश्रेष्ठ है मानस पूजा। इस माध्यम से ईश्वर से सीधा संपर्क होता है। संयोग से इसका प्रचार कम है। इससे चित्त एकाग्र और सरस हो जाता है। परिणामस्वरूप बाह्य पूजा में भी रस मिलने लगता है। हर भक्त को इसे अपनाना चाहिए। आप सामान्य पूजा करें। साथ ही प्रतिदिन थोड़ा समय इसमें भी दें। यह विधि योग, ध्यान और भक्ति का अनूठा मिश्रण है। यह व्यक्ति को आध्यात्म के शिखर पर पहुंचा देता है। इसमें किसी तामझाम की जरूरत नहीं है। फायदा बहुत अधिक मिलता है। अर्थात-हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा होय।
मानस पूजा में तामझाम की जरूरत नहीं
पूजन की प्रचलित विधियों में काफी तामझाम होता है। भगवान को भोग का प्रावधान है। कई वस्तुएं अर्पित की जाती हैं। उन्हें जुटाना कठिन होता है। मानस पूजा में सारा काम मानसिक रूप से होता है। सिर्फ भक्ति और भावना की जरूरत होती है। पूजा में कल्पनाशीलता जरूरी होती है। उल्लेखनीय है कि भगवान को किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं। वे इन सबसे परे हैं। सामान्य पूजन में भी तरह-तरह की वस्तुएं देकर मुख्य रूप से भाव ही प्रदर्शित किया जाता है। इसमें व्यक्ति की आर्थिक स्थिति का हाथ होता है। इसमें ऐसा कोई बंधन नहीं है। आप इष्ट को दिव्य व दुर्लभ वस्तुएं भेंट कर सकते हैं।
भावना और कल्पनाशीलता का महत्व
इसमें सब आपकी भावना व कल्पनाशक्ति पर निर्भर है। यह साधक को सामर्थ्यवान बनाता है। वह अपनी मानसिक शक्ति से निराकार से साकार और साकार से निराकार का सफर कर पाता है। साथ ही नव निर्माण भी कर सकता है। कोई बंधन या सीमा नहीं है। न श्लोक की जरूरत और न पूजन प्रक्रिया की। आप किसी भी भाषा में पूजा कर सकते हैं। भक्त का भगवान से सीधा संवाद होता है। यही कारण है कि सर्वश्रेष्ठ है मानस पूजा।
ऐसे करें मानस पूजा
सबसे पहले स्नानादि से निवृत्त हो लें। फिर शांत माहौल में आसन पर बैठें। आंखें बंद या आधी खुली रख सकते हैं। ध्यान अंतस (अंदर) की ओर होना चाहिए। इष्ट (जिस देवी या देवता की पूजा करनी हो) का ध्यान करें। उनका ध्यान करते हुए उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव करें। तब मानसिक पूजा शुरू करें। ध्यान रखें कि यह पूरी तरह मानसिक है। इसमें कुछ भी बोलना या करना नहीं है। नीचे पूजा के लिए प्रतीकात्मक रूप से मंत्र दे रहा हूं। आप चाहें तो इसे मानसिक रूप से पढ़ें। बगल में अर्थ भी दे रहा हूं। सुविधानुसार मंत्र के बदले उसे अपनी भाषा में मानसिक रूप से दोहरा सकते हैं। इसकी यही खूबी है।
सर्वश्रेष्ठ है मानस पूजा, जानें पूजन विधि
पहले ऊं लं पृथिव्यात्मकं गंधं परिकल्पयामि मंत्र पढ़ें। अर्थात- प्रभो! मैं पृथ्वी रूप गंध (चंदन) आपको अर्पित करता हूं। फिर ऊं हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि मंत्र पढ़ें। यानि- हे इश्वर! मैं आकाश रूप पुष्प आपको अर्पित करता हूं। इसके बाद ऊं यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि पढ़ें। मतलब- प्रभो! मैं वायुदेव के रूप में आपको धूप प्रदान करता हूं। पुन: ऊं रं वह्नयात्कं नैवेद्यंदीपं दर्शयामि। अर्थ- मैं अग्निदेव के रूप में आपको दीप प्रदान करता हूं। तदंतर ऊं वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि पढ़ें। अर्थात- प्रभो! मैं अमृत के समान नैवेद्य आपको समर्पित करता हूं। अंत में ऊं सौं सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि। यानि- सर्वात्मा के रूप में मैं संसार के सभी उपचारों को आपके चरणों में अर्पित करता हूं। ऐसा मानसिक रूप से पढ़ें। ऐसा करने के बाद इष्ट की भावनापूर्वक पूजा करें। मंत्र पढ़ने के साथ उन्हें मानसिक रूप से वे वस्तुएं अर्पित करने की भी भावना करें।
पूजा की कोई सीमा नहीं, सब भक्त पर निर्भर
उक्त विधि मानस पूजा की संक्षिप्त विधि है। शास्त्रोक्त रूप से इससे ही पूजा की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। यह भी ध्यान रहे कि मानस पूजा में कोई सीमा नहीं है। आप चाहें तो आवाहन, विसर्जन, आरती आदि भी मानसिक रूप से कर सकते हैं। अपनी भक्ति और इच्छानुसार इसे जितना लंबा चाहे खींच सकते हैं। आप इष्ट को रत्नजटित सोने का सिंहासन, दिव्य धूप, गंध, नैवेद्य आदि भी समर्पित कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में जितनी देर इष्ट के समीप रहेंगे, आपकी आंतरिक और आध्यात्मिक शक्ति का उतना ज्यादा उत्थान होगा। इसमें भक्त इष्ट को महसूस करता है। उसके स्पर्श का सुख अनुभव कर सकता है। सीधा संवाद कायम कर सकता है। इसी कारण सर्वश्रेष्ठ है मानस पूजा।
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