Karma is necessary with prayer, only then will you get the fruit : प्रार्थना के साथ कर्म जरूरी, तभी मिलेगा फल। श्रीकृष्ण ने कहा-योगियों की निष्ठा कर्मयोग में है। उन्होंने अर्जुन को यही ज्ञान दिया। श्रीमद भगवत गीता में कर्मयोग को श्रेष्ठ बताया गया है। हालांकि उन्होंने भक्तियोग को भी सही मार्ग माना है। कहा-हर मार्ग पर चलने वाला मुझे प्रिय है। उन्होंने सभी मार्गों विस्तार से समझाया है। सार रूप में देखें तो उनका जोर कर्म पर लगता है। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपने लिए श्रेष्ठ मार्ग चुने। जिस मार्ग को चुने उस पर निष्ठा से चले। तभी उसका कल्याण हो सकेगा।
श्रीमद भगवत गीता से
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥4.11॥
अर्थात- हे अर्जुन! जो भक्त मुझे जिस भाव से भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ। सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं॥4.11॥
श्रीभगवानुवाच
लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ।
ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्॥3.3॥
अर्थात- श्रीभगवान बोले- हे निष्पाप! इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा कही गई है। साधन की पराकाष्ठा का नाम ‘निष्ठा’ है। सांख्य योगियों की निष्ठा ज्ञान योग से है। दूसरे शब्दों में माया से उत्पन्न संपूर्ण गुणों में बरतते हैं, ऐसा समझकर तथा मन, इंद्रिय और शरीर द्वारा होने वाली क्रियाओं में कर्तापन के अभिमान से रहित होकर सर्वव्यापी सच्चिदानंदघन परमात्मा में एकीभाव से स्थित रहने का नाम ‘ज्ञान योग’ है। इसके ‘संन्यास’, ‘सांख्ययोग’ आदि नाम भी हैं।
योगियों की निष्ठा कर्मयोग से
योगियों की निष्ठा कर्मयोग से है। मतलब- फल और आसक्ति को त्यागकर भगवदाज्ञानुसार केवल भगवदर्थ समत्व बुद्धि से कर्म करने का नाम ‘निष्काम कर्मयोग’ है। इसी के ‘समत्वयोग’, ‘बुद्धियोग’, ‘कर्मयोग’, ‘तदर्थकर्म’, ‘मदर्थकर्म’, ‘मत्कर्म’ आदि नाम हैं। श्रीकृष्ण के अनुसार ये सभी उचित मार्ग हैं। अन्य ग्रंथों ने भी कर्म को प्रधान माना है। उसी से सृष्टि का संचालन होता है। इसका मतलब प्रार्थना को कम करना नहीं है। बस, प्रार्थना के साथ कर्म जरूर करें। कर्म में कर्ता का भाव नहीं होना चाहिए।
प्रस्तुति-मलकीयत सिंह
प्रतिदिन स्मरणीय और उपयोगी मंत्र जो आपकी जिंदगी बदल देंगे