पुत्र की लंबी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य के लिए जीउतिया

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परंपरा का अंधा अनुकरण करना धर्म नहीं
परंपरा का अंधा अनुकरण करना धर्म नहीं।

तीन दिवसीय कठिन व्रत 9 से, जीउतिया 10 को

Jivitputrika Vrat 2020 : पुत्र की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाने वाला जीउतिया व्रत इस वर्ष 10 सितंबर को है। यह कहने को एक दिन का है लेकिन पूरी प्रक्रिया तीन दिन की होती है। अश्विनी मास के कृष्णपक्ष अष्टमी के दिन महिलाएं इसे मनाती हैं। तीन दिन वाले इस व्रत के लिए महिलाएं करीब 24 घंटे का निराहार रहती हैं। व्रत और उसका पारण तिथि के अनुसार कम-ज्यादा होता रहता है। मान्यता है कि जीउतिया या जीवितपुत्रिका व्रत करने वाली माताओं को पुत्र शोक नहीं होता है। उनके पुत्र की उम्र लंबी और स्वास्थ्य अच्छा रहता है। कई महिलाएं पुत्र प्राप्ति की कामना लेकर भी इस व्रत को करती हैं। आइए जानें इस व्रत के शुभ मुहुर्त, तिथि, तरीका और महत्व के बारे में।

जानें व्रत के शुभ मुहुर्त को

तीन दिन के इस व्रत की शुरुआत इस बार नौ सितंबर को नहाय-खाय के साथ होगी। इस बार अष्टमी तिथि 9 सितंबर की रात 9.46 बजे शुरू होगी। यह 10 सितंबर को रात 10.47 तक चलेगी। व्रती महिलाओं को रात 9.46 बजे से पहले स्नान कर लेना है। फिर मड़ुआ की रोटी, नोनी का साग, झिंगनी और कंद का भोजन करना है। सुबह सूर्योदय से पहले हल्के सरगही-ओंगठ कर व्रत का संकल्प लेना है। व्रती महिलाएं सूर्योदय से पहले सिर्फ एक बार ही मीठा भोजन कर सकती हैं। तीखे और भारी भोजन से परहेज करना है। अगले दिन भर फिर कुछ खाना-पीना नहीं है। व्रत के पारण का समय 11 सितंबर को सूर्योदय के बाद 12 बजे तक का है। व्रती महिलाएं नहा-धोकर तय समय में पारण करेंगी।

पूजन विधि

प्रदोष काल में जमीन को साफ कर बगल में छोटा गड्ढा खोदकर जलाशय का रूप दें। यह संभव नहीं हो तो किसी पात्र में जल रख लें। वहां पाकड़ की टहनी को खड़ाकर जीमूतवाहन की कुश निर्मित प्रतिमा (प्रतीकात्मक रूप से) बनाएं। उसे जल या मिट्टी के पात्र में स्थापित करें। पीली व लाल रूई से सजाएं। फिर धूप, दीप, अक्षत, फूल के साथ नैवेद्य के द्वारा पूजा कर कथा सुनें। व्रती दिन भर कुछ खा-पी नहीं सकती हैं।

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा

इसे लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं। पहली महाभारत काल से जुड़ी हैं। अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र चला दिया था। तब श्रीकृष्ण ने गर्भ की रक्षा की। बाद में जन्मे मृतप्राय बालक को जीवित भी कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण ही बालक का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। वही बाद में राजा परीक्षित के नाम से मशहूर हुए। तब से ही इस व्रत को किया जाता है।

दूसरी कथा अत्यंत उदार और परोपकारी राजा जीमूतवाहन की है। जीमूतवाहन को कम उम्र में राज्य मिल गया था। लेकिन राजकाज में उनका मन नहीं लगता था। अंततः उसे छोड़ पिता की सेवा करने वन में चले गए। वहीं उनका विवाह मलयवती नामक राजकन्या से हुआ। एक बार वन भ्रमण के दौरान जीमूतवाह ने वृद्ध महिला को विलाप करते देखा। पूछने पर वृद्धा ने बताया कि वह नागवंश की महिला है। उनका एक ही पुत्र शंखचूड़ है। पक्षी राज गरूड़ के साथ नागवंशियों की शर्त है। उसके अनुसार प्रतिदिन एक नाग को उनके समक्ष भोजन के लिए भेजना पड़ता है। उस दिन उनके इकलौते पुत्र की बारी थी। वद्धा ने कहा कि पुत्र ही नहीं रहेगा, तो वह किसके सहारे जीवित रहेंगी? 

जीमूतवाहन का त्याग

वृद्धा की बात सुनकर जीमूतवाहन का दिल पसीज गया। उन्होंने कहा कि वे उसके पुत्र के प्राणों की रक्षा करेंगे। इसके लिए उन्होंने अपना जीवनदान करने का निर्णय लिया। उन्होंने शंखचूड़ के लाल वस्त्र से खुद को ढक लिया। फिर तय स्थान पर लेट गए। पक्षीराज आए और उन्हें चंगुल में दबाकर पहाड़ की चोटी पर बैठ गए। उन्होंने देखा कि वे जिसे भोजन बनाने लाये हैं उसके चेहरे पर भय नहीं है। ऐसा पहली बार हुआ था। उन्होंने उनसे उनका परिचय और भयभीत नहीं होने का कारण पूछा। तब जीमूतवाहन ने सारी बात बता दी। वे जीमूतवाहन के इस कार्य से अति प्रसन्न हुए और उन्हें जीवनदान दिया। साथ ही वादा किया कि अब वे नागों की बलि नहीं लेंगे। तब से जीमूतवाहन की पूजा शुरू की गई है।


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